किस्तों में जारी हो रहे भारतीय जनता पार्टी के जिला अध्यक्षों में आज निवाड़ी के भाजपा जिला अध्यक्ष की घोषणा कर दी गई है राजेश पटेरिया को यहां का जिला अध्यक्ष बनाया गया है अभी भी इंदौर शहरी और ग्रामीण जिला अध्यक्षों की घोषणा होना बाकी है. इसी विषय पर प्रस्तुत है 4thpillar का विश्लेषण..
BJP@2025
सूरत नई, सीरत वही
दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी में सबसे बड़ा बदलाव शुरु हो गया है। बदलाव का सूत्र भी सामान्य है। नींव से शुरुआत कर शिखर तक का निर्माण किया जा रहा है। भगवा दल की नींव कहे जाने वाले कार्यकर्ताओं का फौरी तौर पर प्रतिनिधित्व एक बूथ कार्यकर्ता करता है। इसलिए बदलाव की शुरुआत भी इसी स्तर पर हुई है। हम मध्यप्रदेश की बात कर रहे हैं तो नए चेहरों ने संगठन के कर्ता-धर्ता बनने की ओर पहला कदम रख दिया है। इसके बाद संगठन ने अपनी मशीनरी का इस्तेमाल किया और संगठनात्मक दृष्टि से प्रदेश को 62 जिलों में विभाजित कर ज्यादातर में कमान भी सौंप दी गई है। सबकी निगाहें प्रदेश के मुखिया पर हैं। नई भाजपा का नया मुखिया कौन होगा, यह देखने के लिए दिलचस्पी चरम पर नजर आ रही है। जिस तरह लगभग 15 दिनों तक चले किंतु-परंतु के तिलिस्म को तोड़कर पार्टी ने 72 घंटों के भीतर अपने अधिकांश जिला अध्यक्ष घोषित कर दिए, उससे लगता है कि सबकुछ फिक्स हो चुका है। बस सही समय और अवसर की तलाश है। जल्द ही पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा भी सामने आ जाएगा।
कैसी होगी नई भाजपा?
दिसम्बर 2023 में भारतीय जनता पार्टी ने विधानसभा चुनाव की सफलता से अविभूत होकर आश्चर्यजनक बदलाव किए। कभी पार्टी की बैठकों में पिछली या मध्य पंक्ति में नजर आने वाले डॉ. मोहन यादव अचानक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए। तब लोकसभा चुनाव नजदीक थे। ऐसे में अधिकांश राजनीतिक विश्लेषकों ने माना कि भाजपा हमेशा की तरह एक तीर से नई निशाने साध रही है। उत्तरप्रदेश में फिसलती जमीन को बचाने के लिए यादव चेहरे को सीएम पद दिया गया है, ताकि मध्यप्रदेश की सीमा से सटे देश की सबसे बड़ी आबादी वाले सूबे में सबसे बड़ी पार्टी की धाक मजबूत हो सके। हालांकि यह निशाना खाली गया और भाजपा को आधे से ज्यादा सीटों का नुकसान उत्तरप्रदेश में हो गया है। यह उदाहरण इसलिए देना आवश्यक है, क्योंकि साल 2023 में हुए बदलाव के बाद अब भाजपा अपने सभी परिवर्तन जोश के आधार पर नहीं बल्कि होश में करने का प्रयास कर रही है। हाल ही में भारतीय जनता पार्टी के जिला अध्यक्षों की घोषणा भी इसी फॉर्मूला की वजह से देरी से हुई। जिन जिलों में पार्टी को एक या एक से अधिक दावेदार समकक्ष नजर आए, जातिगत समीकरणों को साधने में माथापच्ची करना पड़ी, वहां कोई नया प्रयोग नहीं किया गया। हां, कुछ ऐसा जरूर हो गया है कि भविष्य में इन समीकरणों को ध्यान में रखकर ही आगे बढऩा होगा। भाजपा चाहती है कि कार्यकर्ताओं की नाराजगी को अब यहीं थाम दिया जाए और नए-नवेले नेताओं का मान भी रख दिया जाए। ऐसे में प्रयास यही है कि जिन नेताओं के पास अभी संगठन की जिम्मेदारी है, उन्हें सामंजस्य बैठाने की जिम्मेदारी सौंप दें। जिला अध्यक्षों की सूची में भी ऐसा ही हुआ है। जिन नेताओं के पास नई और पुरानी भाजपा को साथ लेकर चलने की काबिलियत थी, उन्हें दोबारा मौका दिया गया है। गुना और अशोकनगर के जिला अध्यक्ष भी इसी फॉर्मूले के आधार पर घोषित करने की जानकारी सामने आ रही है। शुरुआत में लगा कि भारतीय जनता पार्टी को संगठन के मुखिया यानी जिला अध्यक्ष घोषित करने में सबसे ज्यादा ग्वालियर-चम्बल संभाग क्षेत्र में मुश्किल होगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ उज्जैन शहर और विदिशा के जिला अध्यक्ष घोषित करने के बाद अगली ही सूची में सिंधिया के दबदबे वाले ग्वालियर-चम्बल इलाके के नाम सामने आने लगे। इसके बाद भाजपा ने ग्वालियर, दतिया जैसे संवेदनशील (राजनीति के दृष्टिकोण से) शहरों के नाम भी घोषित कर दिए। कुछ जगह अभी भी इंतजार करवाया जाता है, लेकिन ऐसे जिलों के नाम आ चुके हैं, जिनको लेकर कौतुहल बना हुआ था।
विष्णु का भविष्य
भारतीय जनता पार्टी का अगला टास्क प्रदेश अध्यक्ष की तैनाती है। फिलहाल यह काम डॉ. विष्णुदत्त शर्मा बखूबी निभा रहे हैं। लेकिन जिस तरह नई भाजपा में बदलाव की बयार चल रही है। उससे बहुत ज्यादा संभावना बन रही हैं कि वीडी शर्मा को दोबारा अवसर देने पर विचार आवश्यकता से अधिक किया जाए। डॉ. वीडी शर्मा दोबारा प्रदेश अध्यक्ष बनने की कतार में कैसे हैं, इसको लेकर सत्ता और संगठन से जुड़े जानकार मानते हैं कि उन्होंने लोकसभा चुनाव में शत-प्रतिशत परिणाम दिया है। इसके बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की तरह उनका केंद्रीय मंत्री न बनना संगठन में एक और बड़ी जिम्मेदारी मिलने की योग्यता में इजाफा करता है। विष्णु दत्त शर्मा और डॉ. मोहन यादव की वॉडिंग भी अच्छी नजर आ रही है। ओबीसी और सामान्य वर्ग का कॉम्बिनेशन भी बन रहा है। सबसे बड़ी बात लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा आश्चर्यजनक बदलाव से बच रही है और अपने पुराने लोगों को महत्व देने में जुट गई है। हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव नतीजों के बाद पुराने नेताओं को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला इसी की एक नजीर है। यही तरीका संगठन को मजबूती देने में भी इस्तेमाल होने वाला है। इसलिए विष्णुदत्त शर्मा की संभावनाएं अधिक हो सकती हैं। वहीं प्लान बी की बात करें तो फिर चौंकाने वाला निर्णय ही सामने आएगा। कोई बड़ी बात नहीं है कि डॉ. मोहन यादव को फ्री हैंड देने के लिए वर्तमान केबिनेट के दिग्गज मंत्रियों में से किसी को यह जिम्मेदारी सौंप दी जाए। ऐसे में कैलाश विजयवर्गीय वह चौंकाने वाले चेहरे हो सकते हैं। क्योंकि वे सामान्य वर्ग के प्रदेश अध्यक्ष का रिप्लेस करेंगे। नरेन्द्र सिंह तोमर पहले भी प्रदेश अध्यक्ष का पद संभाल चुके हैं तो उनके नाम पर विचार करने की संभावनाओं को शून्य नहीं माना जा सकता है। अब रही बात सिंधिया खेमे की तो संगठन में उनका दखल बहुत कम होगा, यह तय है। वे सत्ता तक ही सीमित रहने वाले हैं। भारतीय जनता पार्टी की संगठनात्मक गतिविधियों का हिस्सा रह चुके एक नेता बताते हैं कि किसी नए चेहरे को प्रदेश अध्यक्ष का पद उसी को सौंपा जाएगा तो सबसे पहले आरएसएस की पसंद होगा। बाद में उसे कार्यकर्ताओं के बीच लोकप्रिय बनाने के जतन किए जाएंगे, यही पार्टी की रीति और नीति है।
धर्मेन्द्र रिटर्न
अपने पहले कार्यकाल के सफलता पूर्वक अंजाम का इससे सुखद परिणाम धर्मेन्द्र सिकरवार को कोई और दूसरा नहीं हो सकता था कि ‘सिकरवारÓ के गुना जिला अध्यक्ष होने के तीन टर्म पूरे होने के बाद भी पार्टी धर्मेन्द्र सिंह सिकरवार को पुन: अध्यक्ष बनाने विवश हो गई। और इस सबमें बड़ी बात यह रही कि न केवल ज्योतिरादित्य सिंधिया का आशीर्वाद उन्हें मिला, बल्कि उनके साथ आए स्थानीय सिंधिया समर्थक वरिष्ठ नेताओं ने भी धर्मेन्द्र के लिए लॉबिंग की। अंतत: लम्बे इंतजार के बाद जब जिला अध्यक्षों की दूसरी किश्त जारी हुई तो गुना में धर्मेन्द्र सिकरवार की ही पुन: ताजपोशी हो गई।
धर्मेन्द्र अगेन
पार्टी ने अक्टूबर 2022 में जब पहली बार जिला अध्यक्ष बनाया था। तब गजेंद्र सिंह सिकरवार के बाद धर्मेन्द्र सिंह सिकरवार का बनना हर किसी को चौंका रहा था। बल्कि ऐसे थे, जिन्होंने इस नाम को भाजपा की राजनीति में पहली बार सुना था। लेकिन धर्मेन्द्र ने इस मौके का पूरा शिद्दत से उपयोग किया और अपने को संगठन में पूरी तरह झोंक दिया। दिन-रात की मेहनत भले ही काम न आती लेकिन निर्विवाद और निर्गुट रहना उनकी इतनी बड़ी विशेषता बन गई कि उसने दूसरे दावेदारों से कहीं आगे लाकर खड़ा कर दिया। इसीलिए चाहे स्थानीय पन्नालाल शाक्य, गोपीलाल जाटव, हरिसिंह यादव, सूर्यप्रकाश तिवारी और राधेश्याम पारीख जैसे वरिष्ठ नेता हों या फिर पार्टी में हाल ही में आए योगेंद्र लुम्बा, देवेंद्र गुप्ता या सुनील शुभम् जैसे नेता। किसी को भी धर्मेन्द्र के नाम पर ऐतराज नहीं था। उसपर गुना मुख्यालय की विधानसभा सीट के साथ-साथ लोकसभा में सिंधिया की ऐतिहासिक जीत का श्रेय भी उनके हिस्से आ ही गया। जिले में उनके कार्यकाल में हुए स्थानीय निकायों के चुनाव और उप चुनाव में भी पार्टी का प्रदर्शन प्रभावी रहा। कुल मिलाकर ऐसा कुछ भी नहीं था जो धर्मेन्द्र को रिपीट होने में आड़े आता।
धर्मेन्द्र ही क्यों?
सबके अपने-अपने तर्क हैं। कोई कह रहा है कि उनकी सौम्य छवि की वजह से उन्हें दोबारा अवसर दिया गया है। किसी का अंदाजा है कि बड़े नेताओं के साथ सामंजस्य ने सिकरवार को लगातार दूसरी बार सरताज बनाया है तो कोई यह मानता है कि कार्यकर्ताओं के बीच उनका कोई विरोध ही नहीं है। इन सबमें एक ही तर्क सबसे सटीक बैठता है, वह है लोकप्रियता। जी हां, लोकप्रियता का पैमाना सिर्फ विधायकी, सांसदी या फिर नगरीय निकाय जैसे चुनावों में टिकट पाने के लिए ही नहीं चाहिए बल्कि संगठन के बड़े पदों पर रहना है तो अपनों के बीच लोकप्रिय होना जरूरी है। यही वजह है कि धर्मेन्द्र सिंह सिकरवार के जिला अध्यक्ष बनने से पहले भी सोशल मीडिया पर उन्हें समर्थन मिल रहा था और नियुक्ति होने के बाद तो शंका और आशंका दूर होते ही कार्यकर्ताओं ने यह बताने में देर नहीं कि उनकी पसंद सिर्फ और सिर्फ धर्मेन्द्र थे। इससे पहले एक तथाकथित पैनल की अफवाह के चलते अधिकांश कार्यकर्ता अपना इच्छा और पसंद का इजहार खुलकर नहीं कर पा रहे थे।
संगठन के भविष्य पर एक नजर
फिलहाल कुछ बदलने वाला नहीं है। सबसे पहले पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष तय होगा। इसके बाद नव निर्वाचित अध्यक्ष (भले ही वीडी शर्मा को एक और मौका मिल जाए) एक बैठक बुलाएंगे, जिसमें नव नियुक्त अध्यक्षों के साथ क्षेत्रीय, जातिगत और सत्ता-संगठन के समीकरणों पर विचार-विमर्श किया जाएगा। इसके बाद संगठन के कार्यकारिणी पर फोकस होगा। जिस तरह के संकेत और नियुक्ति की प्रक्रिया शुरुआत से चल रही है उससे स्पष्ट है कि पुराने कार्यकर्ताओं को संगठन में भागीदारी अच्छे पदों के जरिए दी जाएगी। यानी सिर्फ गुना क्षेत्र पर नजर डालें तो यहां मूल कार्यकर्ता को महामंत्री, उपाध्यक्ष जैसे पदों से नवाजा जा सकता है। नए नवेले कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारियां तो मिलेंगी, लेकिन वे इतनी प्रभावी या फिर दखलंदाजी वाली शायद न हों। लेकिन हर किसी की मंशा उन बड़े पदों को पाने की होगी, जो प्रदेश नेतृत्व के संपर्क में रहने के लिहाज से महत्वपूर्ण होते हैं।
आखिर गुना की इतनी चर्चा क्यों?
इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए साल 2020 के कालखंड में जाना होगा। एक घटनाक्रम या एक सुनामी ऐसी आई थी, जिसने प्रदेश की राजनीति को सिर के बल उलट दिया था। उस सुनामी का केंद्र बिंदु था गुना और गुना की राजनीति का पर्याय माने जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया। हर कोई चर्चा कर रहा था कि ज्योतिरादित्य सिंधिया जिला अध्यक्ष की नियुक्ति में अपना दखल जरूर देंगे। पता नहीं कितना दिया, लेकिन निर्णय या नाम ऐसा आया, जिसने सभी धड़ों को संतुष्ट कर दिया है। ऐसा लग रहा है कि नाराज भाजपा, महाराज भाजपा दोनों को ही कोई शिकायत नहीं होगी। धर्मेन्द्र सिकरवार का व्यक्तित्व ही ऐसा है कि उनसे लगभग ढाई वर्ष के दरमियान किसी ने भी शिकायत नहीं की। हां, भविष्य में चुनौतियां जरूर हैं। सबसे प्रमुख चुनौती वही रहेगी कि सिकरवार सिंधिया समर्थकों को कितना उपकृत कर सकते हैं। या फिर उन्होंने संगठन की हार्डकोर लाइन पर चलना होगा, जिसका अनुसरण करने के दौरान रास्ते में कांटे बहुत आएंगे। हालांकि सिकरवार के करीबी और उन्हें अच्छे तरीके से जानने वाले लोग कहते हैं कि वे विवादों से दूर रहते हैं। जिस काम में विवाद की तिनका मात्र गुंजाइश हो, वहां सिकरवार हाथ तक नहीं डालते हैं। ऐसे में सिंधिया को संतुष्ट रखना कोई मुश्किल नहीं है।
एक नजर संगठन शिल्पियों पर
गुना जिले में भारतीय जनता पार्टी का विचार और संगठन के साथ पूर्व से ही जनता पार्टी फिर जनसंघ के रूप में कार्य करती रही है। इसके पास कार्यकर्ता का संगठनात्मक ढांचा था। जब भारतीय जनता पार्टी अपने नए नाम के साथ आई तो गुना जिले की कमान गोविंद अग्रवाल को दी। गोविंद अग्रवाल ने संगठन कार्य को आगे बढ़ाया पार्टी के संविधान के अनुसार जब जिला अध्यक्ष का परिवर्तन हुआ तो चांचौड़ा के कृष्णबल्लभ गुप्ता को जिला अध्यक्ष बनाया। गुप्ता आपातकाल के बाद हुए चुनाव में चांचौड़ा से जनता पार्टी के विधायक रहे चुके थे। सहज सरल गुप्ता ने अपने कार्यकाल में चंदेरी से लेकर मधुसूदनगढ़ तक प्रवास कर संगठन की गांव तक ले गए। गुप्ता के बाद जिले के वरिष्ठ अभिभाषक भागचंद सौगानी को जिला अध्यक्ष बनाया गया। राजमाता विजयराजे सिंधिया के करीबी रहे सौगानी बाद में विधायक भी रहे। इस इसके बाद अशोकनगर के नीलम सिंह यादव को पार्टी की कमान दी गई। नीलम सिंह यादव राम मंदिर आंदोलन के समय अशोकनगर के विधायक भी रहे हैं। नीलम सिंह ने पार्टी की छवि शहरी से ग्रामीण क्षेत्र से स्वीकार्यता बढ़ाई। इधर भारतीय जनता पार्टी को राम मंदिर आंदोलन से लाभ मिला और वह अपना जनाधार बढ़ाने में सफल हुई।तो पार्टी की कमान अशोकनगर के ओम प्रकाश चौधरी को दी गई। श्री चौधरी को दो बार जिला अध्यक्ष बनने का अवसर दिया। इसके बाद अशोक नगर के दबंग नेता देशराज सिंह यादव जिला अध्यक्ष बने। श्री यादव दो बार जिला अध्यक्ष रहे। कांग्रेस के शासन काल में सर्वाधिक आंदोलन के लिए देशराज सिंह यादव को जाना जाता है। गुना से विभाजित होकर बने अशोकनगर जिले के बाद सबसे पहली कमान हरिसिंह यादव को दी गई। अपने मीठे व्यवहार से कार्यकर्ताओं जाने वाले हरिसिंह यादव जी को अलग अलग समय में तीन बार अवसर मिला है। इसी तरह एक बार फिर श्री सौगानी पर विश्वास जताया। बाद में सोगानी अपने खराब स्वास्थ्य के कारण त्यागपत्र दे चुके थे। तब सोगानी की टीम के उपाध्यक्ष रहे पूर्व प्रचारक राधेश्याम पारिख को जिला अध्यक्ष का अवसर मिला। उस कार्यकाल को पूरा करके राधेश्याम पारिख फिर से अध्यक्ष चुने गए। राधेश्याम पारिख को एक धोखाधड़ी के केस में आरोप सिद्ध होने पर त्याग पत्र देना पड़ा। इधर अपने विधायकी का फार्म निरस्त होने से वनवास काट रहे गोपीलाल जाटव को पार्टी ने अपना मुखिया बनाया। गोपीलाल जाटव के कार्यकाल पूरा करने के बाद वापस हरिसिंह यादव ने जिला अध्यक्ष की कुर्सी संभाली। इसके बाद राधेश्याम पारिख पर ये जिम्मेदारी आई। राधेश्याम पारिख के बाद संगठन में वर्षों से काम कर रहे गजेंद्र सिंह सिकरवार जिला अध्यक्ष बने। गजेंद्र सिंह सिकरवार के कार्यकाल में भाजपा लोकसभा का ऐतिहासिक चुनाव जीतने में सफल हुई। संगठन चुनाव में भाजपा ने फिर से गजेंद्र सिंह सिकरवार को भाजपा का जिला अध्यक्ष निर्वाचित किया। नगर पालिका के चुनाव में भाजपा का अधिकृत प्रत्याशी हारने के बाद उनकी ही टीम मे जिले के उपाध्यक्ष रहे धर्मेन्द्र सिंह सिकरवार को जिला अध्यक्ष बनाया। धर्मेन्द्र सिंह सिकरवार ने ढाई साल के अधिक के कार्यकाल में विधानसभा और लोकसभा चुनाव कराया।
1980 से अब तक भारतीय जनता पार्टी के जिला अध्यक्ष
(अविभाजित गुना जिला)
गोविंद अग्रवाल सुखद
कृष्णबल्लभ गुप्ता
भागचंद सोगानी
नीलम सिंह यादव
ओम प्रकाश चौधरी
देवराज सिंह यादव
देशराज सिंह यादव
अशोकनगर अलग होने के बाद वर्ष 2002 से
हरिसिंह यादव
हरिसिंह यादव
भागचंद सोगानी
राधेश्याम पारिख
गोपीलाल जाटव
हरि सिंह यादव
राधेश्याम पारिख
गजेंद्र सिंह सिकरवार
धर्मेंद्र सिंह सिकरवार
शिवपुरी-अशोकनगर में अंचल का दबदबा
गुना के पड़ोसी जिला अशोकनगर और शिवपुरी में भी भाजपा ने अपने जिला अध्यक्षों की घोषणा कर दी है। विशेषता यह रही कि दोनों ही जिलों में अंचल के नेताओं को जिले का प्रतिनिधित्व दिया गया है। अशोकनगर में लगातार दूसरी बार जिला अध्यक्ष नियुक्त किए गए आलोक तिवारी मूलत: चंदेरी से आते हैं और यही क्षेत्र उनकी पृष्ठभूमि भी है। उन्होंने सीधे तौर पर मध्यप्रदेश के संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा का करीबी बताया जाता है। आलोक तिवारी को पिछले कुछ समय से मिली तवज्जो इस बात का प्रमाण है कि उनकी संगठन में गहरी पैठ है। उन्होंने भी अपने कार्यकाल में मुंगावली और चंदेरी विधानसभा में भाजपा को जीत का तोहफा दिया है। इनमें से चंदेरी सीट इतनी मुश्किल थी कि कांग्रेस यहां के तत्कालीन विधायक गोपाल सिंह डग्गी राजा को सरकार बनने पर मंत्री बनाने के दावे करने लगी थी। डग्गी राजा इस सीट पर लगातार जीतते आए थे। आलोक तिवारी के कार्यकाल में जगन्नाथ सिंह रघुवंशी ने न केवल चंदेरी का तिलिस्म तोड़ा बल्कि बड़े अंतर से गोपाल सिंह चौहान को शिकस्त देकर आलोक तिवारी का कद भी बढ़ा दिया। वहीं मुंगावली में कड़ी चुनौती और भाजपा प्रत्याशी का विरोध होने के बावजूद रणनीति ने भाजपा को चुनाव जिता दिया। कुल मिलाकर परिस्थितियां कैसी भी रही हों आलोक तिवारी अग्नि परीक्षा में पास हुए हैं। उनकी दोबारा नियुक्ति में विधानसभा और लोकसभा चुनाव की जीत भी अहम किरदार निभाती है, इसमें कोई संदेह नहीं है। फिर एक और फॉर्मूला अशोकनगर में भी काम आया कि आलोक तिवारी का विरोध नहीं था। उन्होंने सिंधिया खेमा और पुराने भाजपाई नेताओं के साथ अच्छा सामंजस्य बैठाया और इसका इनाम भी उन्हें मिला। आलोक तिवारी नियुक्ति के साथ भाजपा ने एक और संदेश देने का प्रयास किया है कि संगठन को हैंडल करने वाले पदों पर ऐसे ही नेताओं को तवज्जो दी जाएगी जो मैनेजमेंट में माहिर हो। अब बात करते हैं शिवपुरी की। यहां पहले ओबीसी जिला अध्यक्ष देने वाली भाजपा ने अचानक चौंकाने वाला निर्णय लिया है। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए करैरा के पूर्व विधायक जसमंत जाटव को इस बार जिला अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। जातिगत समीकरण के लिहाज से यह अच्छा निर्णय हो सकता है, लेकिन इस नियुक्ति ने शिवपुरी में पार्टी के लिए रिस्क फेक्टर बढ़ा दिया है। दरअसल, शिवपुरी जिले में पार्टी ने इस बार विधानसभा चुनाव में शानदार सफलता अर्जित की थी। इसके बावजूद जिला अध्यक्ष बदल देना समझ से परे है। कम से कम गुना और अशोकनगर के समीकरणों पर गौर करें तो शिवपुरी का फॉर्मूला निराला नजर आता है। चर्चा तो यह भी कि शिवपुरी में सिंधिया का बीटो चल गया है। इसीलिए तमाम बड़े और पुराने नेताओं को दरकिनार करते हुए जसमंत जाटव की ताजपोशी कर दी गई है। वजह जो भी हो लेकिन शिवपुरी में भाजपा जिला अध्यक्ष की नियुक्ति का पैरामीटर एक बार फिर यह बता रहा है कि भाजपा में कभी भी कुछ भी हो सकता है।
सेना तैयार, लक्ष्य निर्धारित
राजनीतिक दृष्टिकोण से मध्यप्रदेश के सबसे हाई प्रोफाईल गुना जिले में धर्मेन्द्र सिंह सिकरवार को दोबारा कमान सौंपा एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। गौरतलब बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी संगठन द्वारा कराए गए मंडल निर्वाचन में 16 ऐसे उम्मीदवारों को मंडल अध्यक्ष की कमान मिली, जो धर्मेन्द्र के करीबी या उन्हें पसंद करते हैं। कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि इस बात का संगठन ने पहले ही ध्यान रख लिया था कि जिला अध्यक्ष और मंडल अध्यक्ष के बीच सामंजस्य पूरी तरह बना रहे। धर्मेन्द्र की सेना पहले ही तैयार हो चुकी है। उनका लक्ष्य क्या है, इस पर 23 जनवरी को बूढ़े बालाजी क्षेत्र में आयोजित कार्यक्रमों में धर्मेन्द्र कहते हैं कि संगठन को मजबूत बनाने की दिशा में काम करते रहना ही भाजपा के सिपाहियों का काम होता है। जनहितैषी योजनाओं का क्रियान्वयन और आमजन का उत्थान भाजपा के मंडल अध्यक्ष और सभी कार्यकर्ताओं का लक्ष्य होना चाहिए। काबिल-ए-गौर और काबिल-ए-तारीफ तथ्य यह भी है कि जिस तरह धर्मेन्द्र सिकरवार ने थोड़े ही समय में दिग्गज नेताओं को अपना मुरीद या करीबी बनाया, वह हुनर शायद अब तक दूसरे जिला अध्यक्षों के पास नहीं था। हां, हरिसिंह यादव एक ऐसे जिला अध्यक्ष थे जो सामंजस्य के मास्टर माइंड माने जाते थे। लेकिन राजनीति की वर्तमान परिस्थितियों में भाजपा को कुशल संगठक के साथ-साथ कुशल रणनीतिकार भी चाहिए था, जो धर्मेन्द्र सिकरवार की सूरत में उन्हें मिल गया है। इसलिए हम कह रहे हैं कि सूरत भले ही बदल गई है, लेकिन भाजपा की सीरत वही रहेगी। जिसे गुना भाजपा के जिला अध्यक्ष धर्मेन्द्र सिंह सिकरवार बरकरार रखने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं।